बच्चे मन के सच्चे
(गायिका: सुश्री लता मंगेशकर जी)
बच्चे मन के सच्चे, सारे जग की आंख के तारे ये वो नन्हे फूल हैं जो, भगवान को लगते प्यारे
1. खुद रूहें खुद मन जाऐं, फिर हमजौली बन जाएँ झगड़ा जिसके साथ करें, अगले ही पल फिर बात करें-2
इनको किसी से बैर नहीं, इनके लिऐ कोई गैर नहीं इनका भोलापन मिलता है, सबको बांह पसारे…
बच्चे मनके…
2. इन्सां जब तक बच्चा है, तब तक समझो सच्चा है ज्युं-न्युं उसकी ऊमर बढ़े, मन पर झूठ का मैल चढ़े क्रोध बड़े नफरत घेरे, लालच की आदत घेरे
बचपन इन पापों से हट कर, अपनी ऊमर गुजारे…
बच्चे मनके…
3. तन कोमल मन सुन्दर है, बच्चे बड़ों से बेहतर हैं इनमें छूत और छात नहीं, झूठी जात और पात नहीं भाषा की तकरार नहीं, मजहब की दीवार नहीं
इनकी नजरों में इक है, मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारा…
बच्चे मनके…