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शनिवार व्रत की विधि , कथा व आरती

शनिवार व्रत की विधि , कथा व आरती

शनिवार व्रत की विधि

इस दिन शनि की पूजा होती है। काला तिल, काला वस्त्र, तेल, उड़द शनि को बहुत प्रिय हैं। इसलिए इनेक द्वारा शनि की पूजा होती है। शनि की दशा को दूर करने के लिए यह व्रत किया जाता है। शनि स्त्रोत का पाठ भी विशेष लाभदायक सिद्ध होता है।

शनिवार व्रत कथा

एक समय सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु इन ग्रहों में आपस में झगड़ा हो गया कि हम सब में सबसे बड़ा कौन है? सब अपने आप को बड़ा कहते थे। जब आपस में कोई निश्चय न हो सका तो सब के सब आपस में झगड़ते हुए इन्द्र के पास गए और कहने लगे कि आप सब देवताओं के राजा हो, इसलिए आप हमारा न्याय करके बतलाओ कि हम नवों ग्रहों में सबसे बड़ा कौन है? राजा इन्द्र इनका प्रश्न सुनकर घबरा गये और कहने लगे कि मुझमें यह सामर्थ्य नहीं है जो किसी को बड़ा या छोटा बतलाऊं। मैं अपने मुख से कुछ नहीं कह सकता हूँ।
हाँ एक उपाय हो सकता है। इस समय पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य दूसरों के दुःखों का निवारण करने वाला है। इसलिये तुम सब मिलकर उन्हीं के पास जाओ। वही तुम्हारे दुःखों का निवारणे करेंगे। ऐसा वचन सुनकर सभी ग्रह देवता चलकर भूलोक में राजा विक्रमादित्य की सभा में जाकर उपस्थित हुए और अपना प्रश्न राजा के सामने रखा। राजा उनकी बात सुनकर बड़ी चिन्ता में पड़ गये कि मैं अपने मुख से किसको बड़ा और किसको छोटा बतलाऊं। जिसको छोटा बतलाऊँगा वही क्रोध करेगा परन्तु उनका झगड़ा निपटाने के लिए एक उपाय सोचा कि सोना, चांदी, कांसा, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लोहा नवों धातुओं के नौ आसन बनवाये। सब आसनों को क्रम से जैसे सोना सबसे पहले और लोहा सबसे पीछे बिछाये गये। इसके पश्चात् राजा ने सब ग्रहों से कहा कि आप सब अपने-अपने सिंहासनों पर बैठिए, जिसका आसन सबसे आगे वह सबसे बड़े और जिसका आसन सबसे पीछे वह सबसे छोटा जानिये क्योंकि लोहा सबसे पीछे था और वह शनिदेव का आसन था इसलिए शनिदेव ने समझ लिया कि राजा ने मुझको सबसे छोटा बना दिया है। इस पर शनि को बड़ा क्रोध आया और कहा कि राजा तू मेरे पराक्रम को नहीं जानता। सूर्य एक राशि पर एक महीना, चन्द्रमा सवा दो महीना दो दिन, मंगल डेढ़ महीना, बृहस्पति तेरह महीने, बुध और शुक्र एक महीने परन्तु मैं एक राशि पर ढाई अथवा साढ़े सात साल तक रहता हूँ। बड़े-बड़े देवताओं को भी मैंने भीषण दुःख दिया है। राजन् ! सुनो रामजी को साढ़े साती आई और बनवास हो गया और रावण पर आई तो राम ने लक्ष्मण को सेना लेकर लंका पर चढ़ाई कर दी। रावण के कुल का नाश कर दिया। हे राजा अब तुम सावधान रहना। राजा कहने लगा जो कुछ भाग्य में होगा देखा जायेगा। उसके बाद अन्य ग्रह तो प्रसन्नता के साथ चले गये परन्तु शनिदेव बड़े क्रोध के साथ वहां से सिधारे। कुछ काल व्यतीत हो जाने पर जब राजा को साढ़े साती की दशा आई तो शनिदेव घोड़ों के सौदागर बनकर अनेक सुन्दर घोड़ों के सहित राजा की राजधानी में आए। जब राजा ने सौदागर के आने की खबर सुनी तो अश्वपाल को अच्छे-अच्छे घोड़े खरीदने की आज्ञा दी। अश्वपाल ऐसी अच्छी नसल के घोड़े देखकर और उनका मूल्य सुनकर चकित हो गया और तुरन्त ही राजा को खबर दी। राजा उन घोड़ों को देखकर एक अच्छा सा घोड़ा चुनकर सवारी के लिये चढ़ा। राजा के घोड़े की पीठ पर चढ़ते ही घोड़ा जोर से भागा। घोड़ा बहुत दूर एक बड़े जंगल में जाकर राजा को छोड़कर अन्तर्ध्यान हो गया। इसके बाद राजा अकेला जंगल में भटकता फिरता रहा। बहुत देर के पश्चात् राजा ने भूख और प्यास से दुखी होकर भटकते-भटकते एक ग्वाले को देखा। ग्वाले ने राजा को प्यास से व्याकुल देखकर पानी पिलाया। राजा की उंगली में एक अंगूठी थी। वह उसने निकालकर प्रसन्नता के साथ ग्वाले को दे दी और शहर की ओर चल दिया। राजा शहर में पहुंचकर एक सेठ की दुकान पर जाकर बैठ गया और अपने आपको उज्जैन का रहने वाला तथा अपना नाम वीका बतलाया। सेठ ने उसको कुलीन मनुष्य समझकर जल आदि पिलाया। भाग्यवश उस दिन सेठ की दुकान पर बिक्री बहुत अधिक हुई। तब सेठ उसको भाग्यवान पुरुष समझकर भोजन कराने के लिए अपने साथ ले गया। भोजन करते समय राजा ने आश्चर्य की बात देखी कि खूंटी पर हार लटक रहा है और वह खूंटी उस हार को निगल रही है। भोजन के पश्चात् कमरे में आने पर जब सेठ को कमरे में हार न मिला तो सबने यही निश्चय किया कि सिवाय वीका के और कोई इस कमरे में नहीं आया। अतः अवश्य ही उसी ने हार चोरी किया है परन्तु बीका ने हार लेने से मना कर दिया। इस पर पांच-सात आदमी इक्ट्ठे होकर उसको फौजदार के पास लाये। फौजदार ने उसको राजा के सामने उपस्थित कर दिया और कहा कि ये आदमी तो भला प्रतीत होता है, चोर मालूम नहीं होता, परन्तु सेठ का कहना है कि इसके सिवाय और कोई घर में आया ही नहीं, अवश्य ही इसी ने चोरी की है। तब राजा ने आज्ञा दी कि इसके हाथ-पैर काटकर चौरंगिया किया जाय। राजा की आज्ञा का तुरंत पालन किया गया और वीका के हाथ-पैर काट दिए गए। इस प्रकार कुछ काल व्यतीत होने पर एक तेली उसको अपने घर ले गया और कोल्हू पर उसको बिठा दिया। वीका उस पर बैठा हुआ जबान से बैल हांकता रहा। शनि की दशा समाप्त हो गई और एक रात को वर्षा ऋतु के समय वह मल्हार राग गाने लगा। उसका गाना सुनकर उस शहर के राजा की कन्या उस राग पर मोहित हो गई और दासी को खबर लाने को भेजा कि शहर में कौन गा रहा है। दासी सारे शहर में फिरती-फिरती क्या देखती है कि तेली के घर में चौरंगिया राग गा रहा है। दासी ने महल में आकर राजकुमारी को सब वृतान्त सुना दिया। बस उसी क्षण राजकुमारी ने अपने मन में यह प्रण कर लिया चाहे कुछ हो मैंने इस चौरंगिया के साथ विवाह करना है। प्रातःकाल होते ही जब दासी ने राजकुमारी को जगाना चाहा तो राजकुमारी अनशन व्रत लेकर पड़ी रही। तब दासी ने रानी के पास जाकर राजकुमारी के न उठने का वृतांत कहा। रानी ने तुरंत ही वहां पर आकर राजकुमारी को जगाया और उसके दुःख का कारण पूछा, तो राजकुमारी ने कहा कि माताजी मैंने यह प्रण कर लिया है कि तेली के घर में जो चौरंगिया है उसी के साथ विवाह करूंगी। माता ने कहा पगली यह क्या बात कह रही है? तुझको किसी देश के राजा के साथ परणाया जायेगा। कन्या कहने लगी कि माताजी मैं अपना प्रण कभी नहीं तोडूंगी। माता ने चिन्तित होकर यह बात राजा को बताई। तब महाराज ने भी आकर यह समझाया कि मैं अभी देश-देशान्तर में अपने दूत भेजकर सुयोग्य, रूपवान एवं बड़े-से-बड़े गुणी राजकुमार के साथ तुम्हारा विवाह करूंगा। ऐसी बात तुमको कभी नहीं विचारनी
चाहिए। कन्या ने कहा, “पिताजी मैं अपने प्राण त्याग दूंगी परन्तु दूसरे से विवाह नहीं करूंगी।” इतना सुनकर राजा ने क्रोध से कहा, “यदि तेरे भाग्य में ऐसा ही लिखा है तो जैसी तेरी इच्छा हो वैसा ही कर।” राजा ने तेली को बुलाकर कहा कि तेरे घर में जो चौरंगिया है उसके साथ मैं अपनी कन्या का विवाह करना चाहता हूँ। तेली ने कहा कि यह कैसे हो सकता है। कहाँ आप हमारे राजा और कहाँ मैं एक नीच तेली? परन्तु राजा ने कहा कि भाग्य के लिखे को कोई नहीं टाल सकता। अपने घर जाकर विवाह की तैयारी करो। राजा ने उसी समय तोरण और वन्दनवार लगवाकर अपनी राजकुमारी का विवाह चौरंगिया विक्रमादित्य के साथ कर दिया।
रात्रि को जब विक्रमादित्य और राजकुमारी महल में सोये तो आधी रात के समय शनिदेव ने विक्रमादित्य को स्वप्न दिया कि राजा कहो मुझको छोटा बतलाकर तुमने कितना दुःख उठाया? राजा ने क्षमा मांगी। शनिदेव ने प्रसन्न होकर विक्रमादित्य को हाथ-पैर दिये। तब राजा ने कहा, “महाराज मेरी प्रार्थना स्वीकार करें कि जैसा दुःख आपने मुझे दिया है ऐसा और किसी को न दें।” शनिदेव ने कहा कि तुम्हारी यह
प्रार्थना स्वीकार है, जो मनुष्य मेरी कथा सुनेगा या कहेगा उसको मेरी दशा में कभी किसी प्रकार का दुःख नहीं होगा और जो नित्य ही मेरा ध्यान करेगा या चींटियों को आटा डालेगा उसके सब मनोरथ पूर्ण होंगे। इतना कहकर शनिदेव अपने धाम को चले गये।
राजकुमारी की आँख खुली और उसने राजा के हाथ-पांव देखे तो आश्चर्य को प्राप्त हुई। उसको देखकर राजा ने अपना समस्त हाल कहा कि मैं उज्जैन का राजा विक्रमादित्य हूँ। यह बात सुनकर राजकुमारी अत्यन्त प्रसन्न हुई। प्रातःकाल राजकुमारी से उसकी सखियों ने पूछा तो उसने अपने पति का समस्त वृतांत कह सुनाया। तब सब ने प्रसन्नता प्रकट की और कहा कि ईश्वर ने आपकी मनोकामना पूर्ण कर दी। जब उस सेठ ने यह सुनी तो वह विक्रमादित्य के पास आया और राजा विक्रमादित्य के पैरों पर गिरकर क्षमा मांगने लगा कि आप पर मैंने चोरी का झूठा दोष लगाया। अतः आप मुझको जो चाहें दण्ड दें। राजा ने कहा, “मुझ पर शनिदेव का कोप था इसी कारण यह सब दुःख मुझको प्राप्त हुआ। इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं, तुम अपने घर जाकर अपना कार्य करो। सेठ बोला कि मुझे तभी शांति होगी जब आप मेरे घर चलकर प्रीतिपूर्वक भोजन करोगे। राजा ने कहा कि जैसी आपकी मर्जी हो वैसा ही करें। सेठ ने अपने घर जाकर अनेक प्रकार के सुन्दर भोजन बनवाये और राजा विक्रमादित्य को प्रीतिभोज दिया। जिस समय राजा भोजन कर रहे थे एक अत्यंत आश्चर्य की बात सबको दिखाई दी जो खूंटी पहले हार निगल गई थी, वह अब हार उगल रही है। जब भोजन समाप्त हो गया तो सेठ ने हाथ जोड़कर बहुत सी मोहरें राजा को भेंट कीं और कहा कि मेरे श्रीकंवर नामक एक कन्या है उसका पाणिग्रहण आप करें। इसके बाद सेठ ने अपनी कन्या का विवाह राजा के साथ कर दिया और बहुत सा दान-दहेज आदि दिया। इस प्रकार कुछ दिनों तक वहां निवास करने के पश्चात् विक्रमादित्य ने शहर के राजा से कहा कि अब मेरी उज्जैन जाने की इच्छा है। फिर कुछ दिन के बाद विदा लेकर राजकुमारी मनभावनी, सेठ की कन्या श्रीकंवरी तथा दोनों जगह के दहेज में प्राप्त अनेक दास, दासी, रथ और पालकियों सहित विक्रमादित्य उज्जैन की तरफ चले। जब शहर के निकट पहुंचे और पुरवासियों ने राजा के आने का सम्वाद सुना तो समस्त उज्जैन की प्रजा अगवानी के लिए आई। तब बड़ी प्रसन्नता से राजा अपने महल में पधारे। सारे शहर में बड़ा भारी महोत्सव मनाया गया और रात्रि को दीपमाला की गई। दूसरे दिन राजा ने शहर में यह सूचना कराई कि शनिश्चर देवता सब ग्रहों में सर्वोपरि हैं। मैंने इनको छोटा बतलाया इसी से मुझको यह दुःख प्राप्त हुआ। इस कारण सारे शहर में सदा शनिश्चर की पूजा और कथा होने लगी। राजा और प्रजा अनेक प्रकार के सुख भोगती रही। जो कोई शनिवार की इस कथा को पढ़ता या सुनता है शनिदेव की कृपा से उसके सब दुःख दूर हो जाते हैं। शनिवार की कथा को व्रत के दिन अवश्य पढ़ना चाहिए। 
 ॐ शान्ति ! ॐ शान्ति !! ॐ शान्ति ।।।

शनिदेव जी की आरती (१)

चार भुजा तहि छाजै, गदा हस्त प्यारी॥ जय 

रवि नन्दन गज वन्दन, यम अग्रज देवा। 
कष्ट न सो नर पाते, करते तव सेवा ॥ जय० 

तेज अपार तुम्हारा, स्वामी सहा नहीं जावे। 
तुम से विमुख जगत में, सुख नहीं पावे ॥ जय० 

नमो नमः रविनन्दन सब ग्रह सिरताजा। 
बंशीधर यश गावे रखियो प्रभु लाजा॥ जय

शनिदेव जी की आरती (२)

जय जय शनिदेव महाराज जन के संकट हरने वाले।

तुम सूर्यपुत्र बलधारी, भय मानत दुनिया सारी जी। साधत हो दुर्लभ काज ।।

तुम धर्मराज के भाई, जम क्रूरता पाई जी। 
घन गर्जन करत आवाज ।।

तुम नील देव बिकरारी, भैंसा पर करत सवारी जी। कर लोह गदा रहे साज ।।

तुम भूपति रङ्कः बनाओ, निर्धन सिरं छत्र धराओ जी। समरथ हो करन मम काज ।।

राजा को राज मिटाओ, जिन भगतों फेर दिवायो जी। जग में है गयी जै जैकार ।।

तुम हो स्वामी, हम चरनन सिर करत नमामि जी। पुरवो जन जन की आस ।।

यह पूजा देव तिहारी, हम करत दीन भाव ते थारी जी। अंगीकृत करो कृपालु जी ।।

प्रभु सुधि दृष्टि निहारौ, क्षमिये अपराध हमारो जी। है हाथ तिहारे ही लाज ।।

हम बहुत विपत्ति घबराए, शरनागति तुमरी आए जी। प्रभु सिद्ध करो सब काज ।।

यह विनय कर जोर के भक्त सुनावें जी। तुम देवन के सिर ताज ।।

दिव्य साधना भक्ति संगीत – आत्मा की आवाज़ भक्ति संगीत केवल सुरों का संगम नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के बीच एक दिव्य संवाद है। "दिव्य साधना भक्ति संगीत" इसी संवाद का माध्यम बनता है, जो मन, मस्तिष्क और आत्मा को एक शांति व आनंद की अनुभूति प्रदान करता है। यह संगीत किसी धर्म या जाति से परे, केवल भक्ति की भावना को उजागर करता है। दिव्यता और साधना का संगम "दिव्य साधना" का अर्थ है ऐसी आध्यात्मिक साधना जो हृदय को निर्मल कर दे। जब यह साधना संगीत के माध्यम से व्यक्त होती है, तो यह और भी प्रभावशाली बन जाती है। भक्ति संगीत की यह शैली हमें मंदिरों, तीर्थस्थलों, या एकांत साधना स्थलों का अनुभव देती है – चाहे हम कहीं भी हों। भक्ति संगीत का प्रभाव मानसिक तनाव को कम करता है ध्यान और साधना में सहायक होता है आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करता है सकारात्मक विचारों को जन्म देता है हमारा उद्देश्य हमारा प्रयास है कि दिव्य साधना भक्ति संगीत के माध्यम से हर श्रोता को उस आंतरिक शांति का अनुभव कराया जाए, जिसकी तलाश हर आत्मा करती है। चाहे वह कृष्ण भजन हो, शिव तांडव, या माँ दुर्गा की स्तुति – हर सुर, हर शब्द आपको दिव्यता की ओर ले जाएगा। आइए, इस यात्रा का हिस्सा बनिए यदि आप भी भक्ति संगीत से जुड़कर अपनी साधना को सशक्त बनाना चाहते हैं, तो हमारे साथ जुड़िए। हर दिन नए भजनों, कीर्तनों और मंत्रों के माध्यम से हम आपकी आत्मा को छूने वाले संगीत की अनुभूति दिलाते रहेंगे। Divya Sadhna Bhakti Sangeet – Voice of the Soul Devotional music is not just a confluence of notes, but a divine dialogue between the soul and the Almighty. "Divya Sadhna Bhakti Sangeet" becomes the medium of this dialogue, which provides a feeling of peace and joy to the mind, brain and soul. This music highlights only the feeling of devotion, beyond any religion or caste. A confluence of divinity and sadhana "Divya Sadhna" means such spiritual sadhana that purifies the heart. When this sadhana is expressed through music, it becomes even more effective. This style of devotional music gives us the experience of temples, pilgrimage sites, or secluded sadhana places – wherever we are. Effect of Bhakti Sangeet Reduces mental stress Helps in meditation and sadhana Transmits spiritual energy Gives birth to positive thoughts Our aim Our endeavor is to make every listener experience the inner peace that every soul seeks through Divya Sadhna Bhakti Sangeet. Be it Krishna Bhajans, Shiv Tandava, or Maa Durga ki Stuti – every note, every word will take you towards divinity. Come, be a part of this journey If you too want to strengthen your sadhana by connecting with devotional music, then join us. Through new bhajans, kirtans and mantras every day, we will continue to make you experience music that touches your soul.

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