शनि सम्बन्धी अन्य विशेष उपाय व टोटके

शनि सम्बन्धी अन्य विशेष उपाय व टोटके
(1) शनि-कृत अनिष्ट शान्ति के लिए बिछुआ या बिच्छु की मूल को पुष्य, अनुराधा या उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में नीले रूमाल में रखकर शनि मंत्र” ” ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः” मंत्र की 3 माला जप करके नीले पुष्प से गंगाजल के छीटे देकर गले में अथवा दाहिनी भुजा में बांधने से शीघ्र लाभ होता है।
(2) शनिवार को लोहे या स्टील की कटोरी में तेल का छायापात्र करके 5 शनिवार तक आक के पौधे पर अथवा ‘शनि मंदिर’ में तेल चढ़ाना शुभ होगा। पांचवें शनिवार को तेल चढ़ाने के बाद तेल वाली कटोरी वही दबा देना या चढ़ा देना शुभ होगा।
(3) शनिवार को काले मांह 1 मुट्ठी, काले तिल 1 मुट्ठी, 7 दाने काली मिर्च, 7 लौंग, 7 दाने काले चने, 1 पत्थर का कोयला, 1 चमड़े का टुकड़ा, सभी को नीले रूमाल में रखकर मध्यमा अंगुली से शनि का बीज मंत्र पढ़ते हुए 3 बार सरसों के तेल के छीटे दें। गांठ बांधकर अपने सिर से Anti clockwise घुमाकर सायं चलते पानी में बहाना शुभ रहेगा। लगातार 7 शनिवार करना चाहिए।
(4) प्रत्येक शनिवार को स्टील के पात्र में शुद्ध जल, गंगाजल, दूध, नीला पुष्प, 2 लौंग, काले तिल, बताशे या शक्कर मिलाकर पीपल के वृक्ष पर जड़ में शनि मंत्र पढ़कर चढ़ावें। जल चढ़ाते समय अपना मुख पश्चिम की ओर करके चढ़ाना चाहिए। सायंकाल तेल का दीपक जलाना सुभ होगा।
(5) शनि की अनिष्ट शान्ति के लिए शनिवार के व्रत रखकर (11 या 21 व्रत) प्रतिदिन भगवान शिव का पंचोपचार पूजन करके शिवलिङ्ग पर कच्ची लस्सी, बेलपत्र, चीनी, अक्षत, पुष्प आदि डालकर “ॐ नमः शिवाय” का पाठ करना चाहिए। अन्तिम शनिवार को शनि सम्बन्धी वस्तुओं (नीला वस्त्र, नारियल, काले
तिल, फल, मिठाई, बफी आदि) दान दक्षिणा सहित ब्राह्मण को देवें। इससे पारिवारिक, आर्थिक, विवाह, संतान आदि शनिकृत अरिष्ट की शान्ति होगी।
(6) शनिवार से शुरू करके लगातार 43 दिन तक श्री हनुमान मन्दिर में सिंदूर, चमेली का तेल, लड्डू और 1 नारियल चढ़ाना। श्री सुंदरकांड का पाठ करने के पश्चात् श्री हनुमान चालीसा तथा श्री हनुमानाष्टक का पाठ करने से शनि शुभ फल प्रदान करने लगेगा और अरिष्ट की शान्ति होगी।
(7) शरीर कष्ट एवं मृत्यु कारक रोग की शान्ति के लिए लघु मृत्युंजय का जप श्री शिवमन्दिर में यथाशक्ति ब्राह्मण द्वारा करवाकर पश्चात् हवन करना चाहिए।
(8) शनिवार को चपाती पर सरसों का तेल लगाकर कौवे या कुत्ते को खिलाना चाहिए।
(9) प्रत्येक शनिवार को बन्दरों एवं लंगूरों को मीठी खीर, गुड़ से बनी चपाती एवं काले चने डालने से भी शनिकृत पीड़ा शांत होती है।
(10) प्रत्येक शनिवार को (21 शनिवार तक) अन्धविद्यालय, कुष्टाश्रम अथवा अपाहिज आश्रम में 3, 5, 7, 9 या 11 व्यक्तियों को भोजन, उड़द को दाल सहित मीठे चावल या हलुवा, फल, वस्त्रादि का दान करने से शनिकृत (अढैय्या, साढ़ेसती आदि) अनेक अरिष्टों की शान्ति होती है।
(11) शनिवार को पीपल वृक्ष पर कच्ची लस्सी, तिल, पुष्प, अक्षत डालकर मंत्रपूर्वक चढ़ावें। शनिदेव का पूजन धूप-दीप, पुष्पादि से करके कच्चे सूत का धागा लपेटते हुए पीपल वृक्ष की 7 परिक्रमा करना। परिक्रमा करते समय शनि के बीजमंत्र का जप करते रहें। पश्चात् श्री शनि चालीसा एवं शनिवार व्रत की कथा करना चाहिए।
(12) अण्डा, मांस, मछली आदि तामसिक भोजन तथा तम्बाकू, शराबादि के सेवन से परहेज करना चाहिए। विशेषकर शनिवार, रविवार एवं मंगलवार को।
(13) अपने माता-पिता, चाचा, ताऊ आदि श्रेष्ठजनों का सत्कार करके उनका आशीर्वाद ग्रहण करते रहने से व्यवसाय में लाभ व उन्नति होगी।
(14) अष्टम भाव में शनि अशुभ एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानी हो तो श्रो गणेश जी का पूजन, संकटनाशक श्री गणेशस्तोत्र का पाठ एवं श्री गणेश चतुर्थी का व्रत रखना शुभ होगा।
(15) जो शनि का नग नहीं धारण कर सकते, वह लोग घोड़े की नाल या बेड़ी की कील का छल्ला मध्यमा अंगुली में धारण कर सकते है।
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