श्याम बाबा को श्रृंगार मन भावे
स्थाई :-
श्याम बाबा को श्रृंगार मन भावे,खाटू वाले को दरबार मन भावै,
दुनियाँ का नज़ारा के देखा, के देखा,
श्याम बाबा को श्रृंगार मन भावै।
अन्तरा :-
1 ) ऐ को मुखड़ों प्यारो प्यारों,ईकी आँख्या जो अमृत की प्याली,
ऐ की माथे मुकुट है छापर,मोर पंखियाँ गज़ब की निराली,
ऐ का घूंघर वाला बाल,ऐ के हीरो चमके भाल,
में चाँद सितारा के देखा के देखा,
श्याम बाबा को श्रृंगार मन भावै।
2 ) ये तो बदल बदल करे पहरे, नित बाग़ां रंग बिरंगा,
कद केसर लाल गुलाबी, कदे धौळा कदे पचरंगा,
बागो पेहरे घेर गुमेर, पहरे थोड़ी थोड़ी देर,
एक बागो दोबारा ना देखा ना देखा,
श्याम बाबा को श्रृंगार मन भावै।
3 ) ऐ के मोटा मोटा गजरा, फूल कई भांत का पिरोया,
ऊपर से इतर छिड़के, चारो कानी से सेवक है आया,
म्हारों बाबो है शौकीन, देख्या तबियत हो रंगीन,
गुलशन की बहारा के देखा के देखा,
श्याम बाबा को श्रृंगार मन भावै।
4 ) बेठ्यो दरबार लगाकर, यो तो मन्द मन्द मुस्कावे,
मांगणिया ने यो बांटे, यो प्रेमी से प्रेम बढ़ावे,
सारो बाबा को परिवार, बिन्नू श्याम लुटावे प्यार,
अठे थारा और म्हारा के देखा के देखा,
श्याम बाबा को श्रृंगार मन भावै।
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