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सोमवार व्रत की विधि व कथा

सोमवार व्रत की विधि व कथा

सोमवार व्रत की विधि व कथा

सोमवार का व्रत साधारणतः दिन के तीसरे पहर तक होता है | व्रत में फलाहार या पारण का कोई खास नियम नहीं है किंतु यह आवश्यक है कि दिन अथवा रात में केवल एक समय भोजन करें | सोमवार के व्रत में शिवजी और पार्वती का पूजन करना चाहिए | सोमवार के व्रत तीन प्रकार के हैं – साधारण प्रति सोमवार , सौम्य प्रदोष और 16 सोमवार | विधि तीनों की एक जैसी है | शिव पूजन के पश्चात कथा सुननी चाहिए | साधारण प्रति सोमवार , सौम्य प्रदोष और 16 सोमवार व्रत इन तीनों की कथा अलग-अलग है जो आगे लिखी गई है | 

सोमवार व्रत कथा

एक बहुत धनवान साहूकार था , जिसके घर धन आदि किसी प्रकार की कमी नहीं थी | परंतु उसको एक दुःख था कि उसके कोई पुत्र नहीं था | वह इसी चिंता में रात दिन रहता था | वह पुत्र की कामना के लिए प्रति सोमवार को शिवजी का व्रत और पूजन किया करता था तथा सांयकाल को शिव मंदिर में जाकर शिवजी के श्री विग्रह के सामने दीपक जलाया करता था | उसके इस भक्तिभाव को देखकर एक समय पार्वती जी ने शिवजी महाराज से कहा कि महाराज , यह साहूकार आपका अनन्य भक्त है और सदैव आपका व्रत और पूजन बड़ी श्रद्धा से करता है | इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए | 

शिवजी ने कहा ” हे पार्वती ! यह संसार कर्मक्षेत्र है | जैसे किसान खेत में जैसा बीज बोता है वैसा ही फल काटता है | उसी तरह इस संसार में जैसा कर्म करते हैं वैसा ही फल भोगता हैं ” पार्वती जी ने अत्यंत आग्रह से कहा , “महाराज ! जब यह आपका अनन्य भक्त है और इसको अगर किसी प्रकार का दुःख है तो उसको अवश्य दूर करना चाहिए क्योंकि आप सदैव अपने भक्तों पर दयालु होते हैं और उनके दुःखों को दूर करते हैं | यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो मनुष्य आपकी सेवा तथा व्रत क्यों करेगा | ” 

पार्वती जी का ऐसा आग्रह देख शिवाजी महाराज कहने लगे , हे पार्वती ! इसके कोई पुत्र नहीं है इसी चिंता में यह अति दुःखी रहता है | इसके भाग्य में पुत्र न होने पर भी मैं इसको पुत्र की प्राप्ति का वर देता हूँ | परंतु यह पुत्र केवल 12 वर्ष तक जीवित रहेगा | इसके पश्चात वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा | इससे अधिक में और कुछ इसके लिए नहीं कर सकता | यह सब बातें साहूकार सुन रहा था | इससे उसको न कुछ प्रसन्नता हुई और न ही कुछ दुःख हुआ | वह पहले जैसा ही शिवजी महाराज का व्रत और पूजन करता रहा | कुछ काल व्यतीत हो जाने पर साहूकार की स्त्री गर्भवती हुई और दसवें महीने उसके गर्भ में अति सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई | साहूकार के घर में बहुत खुशी मनाई गई परंतु साहूकार ने उसकी केवल 12 वर्ष की आयु जान कोई अधिक प्रसन्नता प्रकट नहीं की और न ही किसी कोई यह भेद बताया | जब वह बालक 11 वर्ष का हो गया तो उस बालक की माता ने उसके पिता से विवाह आदि के लिए कहा तो वह साहूकार कहने लगा कि मैं अभी इसका विवाह नहीं करूंगा | अपने पुत्र को काशीजी पढ़ने के लिए भेजूंगा | फिर साहूकार ने अपने साले अर्थात बालक के मामा को बुला , उसको बहुत-सा धन देकर कहा , ” तुम इस बालक को काशी जी पढ़ने के लिए ले जाओ और रास्ते में जिस स्थान पर भी जाओ यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जाओ |”

वह दोनों मामा-भांजे यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जा रहे थे | रास्ते में एक शहर पड़ा | उस शहर में राजा की कन्या का विवाह था और दूसरे राजा का लड़का जो विवाह कराने के लिए बारात लेकर आया था वह एक आंख से काना था | उसके पिता को इस बात की बड़ी चिंता थी कि कहीं वर को देख कन्या के माता-पिता विवाह में किसी प्रकार की अड़चन पैदा न कर दे | इस कारण जब उसने अति सुंदर सेठ के लड़के को देखा तो मन में विचार किया कि क्यों न दरवाजे के समय इस लड़के से वर का काम चलाया जाये | ऐसा विचार कर वर के पिता ने उस लड़के और मामा से बात की तो वे राजी हो गये फिर उस लड़के को वर के कपड़े पहना तथा घोड़ी पर चढ़ा दरवाजे पर ले गये और सब कार्य प्रसन्नता से पूर्ण हो गया | फिर वर के पिता ने सोचा कि यदि विवाह कार्य भी इसी लड़के से कर लिया जाये तो क्या बुराई है ? ऐसा विचार कर लड़के और उसके मामा से कहा ,” यदि आप फेरो का और कन्यादान के काम को भी कर दें तो आपकी बड़ी कृपा होगी और मैं इसके बदले आपको बहुत कुछ धन दूंगा | ” उन्होंने स्वीकार कर लिया और विवाह कार्य भी बहुत अच्छी तरह से संपन्न हो गया | परंतु जिस समय लड़का जाने लगा तो उसने राजकुमारी की चुनरी के पल्ले पर लिख दिया कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ है परंतु जिस राजकुमार के साथ तुमको भेजेंगे वह एक आँख से काना है और मैं काशी जी पढ़ने जा रहा हूँ | लड़के के जाने के पश्चात उस राजकुमारी ने जब अपनी चुनरी पर ऐसा लिखा हुआ पाया तो उसने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया और कहा कि यह मेरा पति नहीं है | मेरा विवाह इसके साथ नहीं हुआ है | वह तो काशी जी पढ़ने गया है | राजकुमारी के माता-पिता ने अपनी कन्या को विदा नहीं किया और बारात वापस चली गयी | उधर सेठ का लड़का और उसका मामा काशी जी पहुंच गए | वहाँ जाकर उसने यज्ञ करना और लड़के ने पढ़ना शुरू कर दिया | जब लड़के की आयु 12 साल की हो गई उस दिन उन्होंने यज्ञ रचा रखा था कि लड़के ने अपने मां से कहा ,”मामा जी आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है |” मामा ने कहा ,”अंदर जाकर सो जाओ |” लड़का अंदर जाकर सो गया और थोड़ी देर में उसके प्राण निकल गए | जब उसके मामा ने आकर देखा तो वह मुर्दा पड़ा था तो उसको बड़ा दुःख हुआ और उसने सोचा कि अगर मैं अभी रोना-पीटना मचा दूंगा तो यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा | अतः उसने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त कर ब्राह्मणों के जाने के बाद रोना-पीटना आरंभ कर दिया | संयोगवश उसी समय शिव-पार्वती जी उधर से जा रहे थे | जब उन्होंने जोर-जोर से रोने की आवाज सुनी तो पार्वती जी कहने लगी ,” महाराज ! कोई दुखिया रो रहा है इसके कष्ट को दूर कीजिए | जब शिव-पार्वती ने पास जाकर देखा तो वहां एक लड़का मुर्दा पड़ा था | पार्वती जी कहने लगी ,” महाराज यह है तो इस सेठ का लड़का है जो आपके वरदान से हुआ था |” शिवजी कहने लगे , ” हे पार्वती ! इसकी आयु इतनी थी सो यह भोग चुका |” तब पार्वती जी ने कहा ,” हे महाराज ! इस बालक को और आयु दो नहीं तो इसके माता-पिता तड़प-तड़पकर मर जाएंगे |” पार्वती जी के बार-बार आग्रह करने पर शिवजी ने उसकी जीवन वरदान दिया और शिवाजी महाराज की कृपा से लड़का जीवित हो गया | शिव-पार्वती कैलाश चले गए | तब वह लड़का और मामा उसी प्रकार यज्ञ करते तथा ब्राह्मणों का भोजन कराते अपने घर की ओर चल पड़े | रास्ते में वे उसी शहर में आए जहां उसका विवाह हुआ था | वहां पर आकर उन्होंने यज्ञ आरंभ कर दिया तो उस लड़के के ससुर ने उसको पहचान लिया और अपने महल में ले जाकर उसकी बड़ी खातिर की साथ ही बहुत सी दास-दासियों सहित आदर पूर्वक लड़की और जमाई को विदा किया | जब वह अपने शहर के निकट आए तो मामा ने कहा ,” मैं पहले तुम्हारे घर जाकर खबर कर आता हूँ |” जब उस लड़के का मामा घर पहुंचा तो लड़के के माता-पिता घर की छत पर बैठे थे और यह प्रण कर रखा था कि यदि हमारा पुत्र सकुशल लौट आया तो हम राजी-खुशी नीचे आ जाएंगे नहीं तो छत से गिरकर अपने प्राण खो देंगे | इतने में उस लड़के के मामा ने आकर यह समाचार दिया कि आपका पुत्र आ गया है तो उनको विश्वास नहीं आया तब उसके मामा ने शपथ पूर्वक कहा कि आपका पुत्र आपकी स्त्री के साथ बहुत सारा धन लेकर आया है तो सेट ने आनंद के साथ उसका स्वागत किया और बड़ी प्रसन्नता के साथ रहने लगा | इसी प्रकार से जो कोई भी सोमवार के व्रत को धारण करता है अथवा इस कथा को पड़ता है और सुनता है उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है |

                  ॐ नमः शिवाय

                सौम्य प्रदोष व्रत कथा           

पूर्व काल में एक ब्राह्मणी अपने पति की मृत्यु के पश्चात निराधार होकर भिक्षा मांगने लग गई | वह प्रातः होते ही अपने पुत्र को साथ लेकर बाहर निकल जाती और संध्या होने पर घर वापस लौटती | एक समय उसको विदर्भ देश का राजकुमार मिला जिसके पिता को शत्रुओं ने मारकर राज्य से बाहर निकाल दिया था | इस कारण वह मारा-मारा फिरता था | ब्राह्मणी उसे अपने साथ घर ले गई और उसका पालन पोषण करने लगी | एक दिन उन दोनों बालकों ने वन में खेलते खेलते गंधर्व कन्याओं को देखा | ब्राह्मण का बालक तो अपने घर आ गया परन्तु राजकुमार साथ नहीं आया क्योंकि वह अंशुमती नाम की गंधर्व कन्या से बातें करने लगा था दूसरे दिन वह फिर अपने घर से आया वहां पर अंशुमति अपने माता-पिता के साथ बैठी थी | उधर ब्राह्मणी ऋषियों की आज्ञा से प्रदोष का व्रत करती थी | कुछ दिन पश्चात अंशुमती के माता-पिता ने राजकुमार से कहा कि तुम विदर्भ देश के राजकुमार धर्मगुप्त हो , हम श्री शंकर जी की आज्ञा से अपनी पुत्री अंशुमती का विवाह तुम्हारे साथ कर देते हैं | फिर राजकुमार का विवाह अंशुमाती के साथ हो गया | बाद में राजकुमार ने गंधर्वराज की सेना की सहायता से विदर्भ देश पर अधिकार कर लिया और ब्राह्मण के पुत्र को अपना मंत्री बना लिया | यथार्थ में यह सब उस ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत करने का फल था | बस उसी समय से यह प्रदोष व्रत संसार में प्रतिष्ठित हुआ | 

                      ॐ नमः शिवाय

                सोलह सोमवार व्रत कथा           

मृत्यु लोक में विवाह करने की इच्छा करके एक समय श्री भूतनाथ महादेव जी माता पार्वती के साथ पधारे | वहां वे भ्रमण करते-करते विदर्भ देशांतरगर्त अमरावती नाम की अति रमणीक नगरी में पहुंचे | अमरावती नगरी अमरपुरी के सदृश सब प्रकार के सुखों से परिपूर्ण थी | उसमें वहां के महाराजा का बनाया हुआ अति रमणीक शिवजी का मंदिर था | उसमें शंकर जी भगवती पार्वती के साथ निवास करते करने लगे | एक समय माता पार्वती ने प्राणपति को प्रसन्न देख के मनोविनोद करने की इच्छा से बोली ,” हे महाराज ! आज तो हम तुम दोनों चौसर खेलें | शिवजी ने प्राणप्रिय की बात को मान लिया और चौरा खेलने लगे | उस समय इस स्थान पर मंदिर का पुजारी ब्राह्मण मंदिर में पूजा करने को आया | माता जी ने ब्राह्मण से प्रश्न किया कि पुजारी जी बताओ कि इस बाजी में दोनों में किसकी जीत होगी | ब्राह्मण बिना विचारे ही शीघ्र बोल उठा कि महादेव जी की जीत होगी | थोड़ी देर में बाजी समाप्त हो गई और पार्वती जी की विजय हुई | अब तो पार्वती जी ब्राह्मण को झूठ बोलने के अपराध के कारण श्राप देने को उद्यत हुई | तब महादेव जी ने पार्वती जी को बहुत समझाया परंतु उन्होंने ब्राह्मण को कोढ़ी होने का श्राप दे दिया | कुछ समय बाद पार्वती जी के श्रापवश पुजारी के शरीर में कोढ़ पैदा हो गया | इस प्रकार पुजारी अनेक प्रकार से दुखी रहने लगा | इस तरह के कष्ट भोंगते हुए जब बहुत दिन हो गए तो देवलोक की अप्सराय शिवजी की पूजा करने उसी मंदिर में पधारी और पुजारी के कष्ट को देख बड़े दयाभाव से उससे रोगी होने के कारण पूछने लगी | पुजारी ने निःसंकोच सब बातें उनसे कह दी | वे अप्सराये बोली ,” हे पुजारी ! अब तुम अधिक दुखी मत होना |

भगवान शिव जी तुम्हारे कष्ट को दूर कर देंगे | तुम सब बातों में श्रेष्ठ षोडश सोमवार का व्रत भक्ति भाव से करो |” तब पुजारी अप्सराओं से हाथ जोड़कर विन्रम भाव से षोडश सोमवार व्रत की विधि पूछने लगा | अप्सराये बोली कि जिस दिन सोमवार हो उसे दिन भक्ति के साथ व्रत करें , स्वच्छ वस्त्र पहने , आधा सेर गेहूं का आटा ले उसके तीन अंगा बनावें और घी , गुड , दीप , नैवेध , पुंगीफल , बेलपत्र , जनेऊ जोड़ा , चंदन , अक्षत , पुष्पादि द्वारा प्रदोष काल में भगवान शंकर का विधि से पूजन करें तत्पश्चात अंगाओ में से एक शिवजी को अर्पण करें बाकी दो को शिव जी का प्रसाद समझकर उपस्थित जनों में बांट दे और आप भी प्रसाद पावे | इस विधि से 16 सोमवार व्रत करें | तत्पश्चात 17 सोमवार के दिन पाव सेर पवित्र गेहूं के आटे की बाटी बनावे | तदनुसार घी और गुड़ मिलाकर चूरमा बनावे और शिवजी का भोग लगाकर उपस्थित भक्तों में बांटे पीछे आप सकुटुंब प्रसाद ले तो भगवान शिव जी की कृपा से उसके मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं | ऐसा कहकर अप्सराये स्वर्ग में चली गई | ब्राह्मण ने यथाविधि षोडश सोमवार व्रत किया तथा भगवान शिव की कृपा से रोग मुक्त होकर आनंद से रहने लगा | कुछ दिन बाद जब फिर शिवजी और पार्वती उस मंदिर में पधारे , तब ब्राह्मण को निरोग देखकर पार्वती ने ब्राह्मण से रोग-मुक्त होने का कारण पूछा तो ब्राह्मण ने 16 सोमवार व्रत कथा कह सुनाई | तब तो पार्वती जी अति प्रसन्न होकर ब्राह्मण से व्रत की विधि पूछकर व्रत करने को तैयार हुई | व्रत करने के बाद उनकी मनोकामना पूर्ण हुई तथा उनके रूठे पुत्र स्वामी कार्तिकेय स्वयं माता के आज्ञाकारी हुए परंतु कार्तिकेय जी को अपने विचार परिवर्तन का रहस्य जानने की इच्छा हुई और माता से बोल ,” हे माताजी ! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया जिससे मेरा मन आपकी और आकर्षित हुआ | तब पार्वती जी ने वही 16 सोमवार व्रत कथा उनको सुनाई | स्वामी कार्तिकेय जी बोले कि इस व्रत को मैं भी करूंगा क्योंकि प्रियमित्र ब्राह्मण दुखी दिल से प्रदेश गया है | हमें उससे मिलने की बहुत इच्छा है | कार्तिकेय जी ने भी इस व्रत को किया और उनका प्रिय मित्र मिल गया | मित्र ने इस आकस्मिक मिलन का भेद कार्तिकेय जी से पूछा तो वे बोले ,” हे मित्र ! हमने तुम्हारे मिलने की इच्छा करके 16 सोमवार के व्रत किए थे | अब तो ब्राह्मण मित्र को भी अपने विवाह की बड़ी इच्छा हुई | कार्तिकेय जी से इस व्रत की विधि पूछी और यथा विधि व्रत किया | व्रत के प्रभाव से जब वह किसी कार्यवश विदेश गया तो वहां के राजा की लड़की का स्वयंवर था | राजा ने प्रण किया था कि जिस राजकुमार के गले में सब प्रकार हथिनी माला डालेगी में उसी के साथ प्यारी पुत्री का विवाह कर दूंगा | शिवजी की कृपा से ब्राह्मण भी स्वयंवर देखने की इच्छा से राज्यसभा में एक और बैठ गया | नियत समय पर हथिनी आई और उसने जयमाला उसे ब्राह्मण के गले में डाल दि | राजा की प्रतिज्ञा के अनुसार बड़ी धूम-धाम से कन्या का विवाह उस ब्राह्मण के साथ कर दिया और ब्राह्मण को बहुत-सा धन और सम्मान देकर संतुष्ट किया | ब्राह्मण सुंदर राज कन्या पाकर सुख से जीवन व्यतीत करने लगा | एक दिन राजकन्या ने अपने पति से प्रश्न किया | हे प्राणनाथ ! आपने ऐसा कौन-सा भारी पुण्य किया जिसके प्रभाव से हथिनी ने सब राजकुमारों को छोड़कर आपको वरण किया ? ब्राह्मण बोला , हे प्राणप्रिय ! मैंने अपने मित्र कार्तिकेय जी के कथनानुसार 16 सोमवार का व्रत किया था जिसके प्रभाव से मुझे तुम जैसी स्वरूपवान लक्ष्मी की प्राप्ति हुई | व्रत की महिमा को सुनकर राजकन्या को बड़ा आश्चर्य हुआ और वह भी पुत्र की कामना करके व्रत करने लगी | शिवजी की दया से उसके गर्भ से एक अति सुंदर सुशील धर्मात्मा और विद्वान पुत्र उत्पन्न हुआ | माता-पिता दोनों उस देव पुत्र को पाकर अति प्रसन्न हुए और उसका लालन-पालन भली प्रकार से करने लगे | जब पुत्र समझदार हुआ तो एक दिन उसने अपनी माता से प्रश्न किया की मां तूने कौन-सा तप किया है जो मेरे जैसा पुत्र तेरे गर्भ से उत्पन्न हुआ | माता ने पुत्र का प्रबल मनोरथ जान के अपने किए हुए 16 सोमवार व्रत को विधि के सहित पुत्र के सम्मुख प्रकट किया | पुत्र ने ऐसे सरल व्रत को सब तरह के मनोरथ पूर्ण करने वाला सुना तो वह इस भी इस व्रत को राज्याधिकार पाने की इच्छा से हर सोमवार को यथाविधि व्रत करने लगा |उसी समय एक देश के वृद्ध राजा के दूतों ने आकर उसका एक राजकन्या के लिए वरण किया | राजा ने अपनी पुत्री का विवाह ऐसे सर्वगुण संपन्न युवक के साथ करके बड़ा सुख प्राप्त किया | वृद्ध राजा के दिवगंत हो जाने पर यही ब्राह्मण बालक गद्दी पर बिठाया गया , क्योंकि दिवगंत भूप के कोई पुत्र नहीं था | राज्य का अधिकारी होकर भी वह ब्राह्मण पुत्र अपने 16 सोमवार के व्रत को करता रहा | जब 17 सोमवार आया तो विप्र पुत्र ने अपनी प्रियतमा से सब पूजन सामग्री लेकर शिवालय में चलने के लिए कहा | परंतु प्रियतमा ने उसकी आज्ञा की परवाह नहीं की | दास-दासियों द्वारा सब सामग्रीय शिवालय भिजवा दी और आप नहीं गई | जब राजा ने शिवजी का पूजन समाप्त किया , तब एक आकाशवाणी राजा के प्रति हुई | राजा ने सुना की हे राजा ! अपनी इस रानी को राजमहल से निकाल दे नहीं तो तेरा सर्वनाश कर देगी | वाणी को सुनकर राजा के आचार्य का ठिकाना नहीं रहा और तत्काल ही मंत्रणागृह में आकर अपने सभासदों को बुलाकर पूछने लगा कि हे मंत्रियों ! मुझे आज शिवजी की वाणी हुई है कि राजा तू अपनी इस रानी को निकाल दे नहीं तो ये तेरा सर्वनाश कर देगी | मंत्री आदि सब बड़े विस्मय और दुख में डूब गए क्योंकि जिस कन्या के साथ राज मिला है राजा उसी को निकालने का जाल रचता है , यह कैसे हो सकेगा ? अंत में राजा ने उसे अपने यहां से निकाल दिया | रानी दुखी हृदय से भाग्य को कोसती हुई नगर के बाहर हुई | बिना पदत्राण फटे वस्त्र पहने भूख से दुखी धीरे-धीरे चलकर एक नगर में पहुंची | वहां एक गुड़िया सूट कातकर बेचने को जाती थी | रानी की करूंण दशा देख बोली चल तू मेरा सूत बिकवा दे | मैं वृद्धि हूं , भाव नहीं जानती हूं | ऐसी बात बुढ़िया की सुन रानी ने बुढ़िया के सर से सूत की गठरी उतार अपने सर पर रखी , थोड़ी देर बाद आंधी आई और बुढ़िया का सूत पोटली सहित उड़ गया | बेचारी बुढ़िया पछताती रह गई और रानी को अपने साथ से दूर रहने को कह दिया | अब रानी एक तेली के घर गई , तो तेली के सब मटके शिवजी के प्रकोप के कारण चटक गए | ऐसी दशा देख तेली ने रानी को अपने घर से निकाल दिया | इस प्रकार रानी अत्यंत दुख पाती हुई सरिता के तट पर गई तो सरिता का समस्त जल सूख गया | तत्पश्चात रानी एक वन में गई , वहां जाकर सरोवर में सीढ़ी से उत्तर पानी पीने हो गई | उसके हाथ से जल स्पर्श होते ही सरोवर का नीलकमल के सदृश जल असंख्य कीड़ोंमय गंदा हो गया | रानी ने भाग्य पर दोषारोपण करते हुए उस जल को पान करके पेड़ की शीतल छाया में विश्राम करना चाहा | वह रानी जिस पेड़ के नीचे जाती उसे पेड़ के पत्ते तत्काल ही गिरते गए | वन , सरोवर जल की ऐसी दशा देखकर गऊ चराते ग्वालो ने अपने गुसाईं जी से जो उसे जंगल में स्थित मंदिर में पुजारी थे कहीं | गुसाईं जी के आदेशानुसार ग्वाले रानी को पकड़कर गोसाई के पास ले गए | रानी की मुख कांति और शरीर शोभा देख गुसाईं जान गए | यह अवश्य ही कोई विधि की गति की मारी कोई कुलीन अबला है | ऐसा सोच पुजारी जी ने रानी के प्रति कहा कि पुत्री में तुमको पुत्री के समान रखूंगा | तुम मेरे आश्रम में ही रहो | मैं तुमको किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने दूंगा | गुसाईं के ऐसे वचन सुन रानी को धीरज हुआ और आश्रम में रहने लगी | परंतु आश्रम में रानी जो भोजन बनाती उसमें कीड़े पड़ जाते , जल भरके लावे उसमें कीड़े पड़ जाते | अब तो गुसाईं जी भी दुखी हुए और रानी से बोले की हे बेटी ! तेरे पर कौन से देवता का कोप है , जिससे तेरी ऐसी दशा है ? पुजारी की बात सुन रानी ने शिवजी की पूजा करने ना जाने की कथा सुनाई तो पुजारी ने शिवजी महाराज की अनेक प्रकार से स्तुति करते हुए रानी के प्रति बोले की पुत्री तुम सब मनोरथो हो के पूर्ण करने वाले 16 सोमवार व्रत को करो | उसके प्रभाव से अपने कष्ट से मुक्त हो सकेगी | गोसाई की बात सुनकर रानी ने 16 सोमवार व्रत को विधिवत संपन्न किया और 17 सोमवार को पूजन के प्रभाव से राजा के हृदय में विचार उत्पन्न हुआ की रानी को गए बहुत समय व्यतीत हो गया | न जाने कहां-कहां भटकती होगी , ढूंढना चाहिए | यह सोचकर रानी को तलाश करने चारों दिशाओं में दूत भेजें | वे तलाश करते हुए पुजारी के आश्रम में रानी को पाकर पुजारी से रानी को मांगने लगे , परंतु पुजारी ने उसे मना कर दिया तो दूत चुपचाप लौटे और आकर महाराज के सम्मुख रानी का पता बतलाने लगे | रानी का पता प्रकार राजा स्वयं पुजारी के आश्रम में गए और पुजारी से प्रार्थना करने लगे की महाराज ! जो देवी आपके आश्रम में रहती हैं , वह मेरी पत्नी है | शिव जी के कोप से मैंने इसको त्याग दिया था | अब इस पर से शिव का प्रकोप शांत हो गया है | इसलिए मैं इस लिवाने आया हूं | आप इसे मेरे साथ चलने की आज्ञा दे दीजिए | गोसाई जी ने राजा के वचन को सत्य समझकर रानी को राजा के साथ जाने की आज्ञा दे दी | गोसाई की आज्ञा पाकर रानी प्रसन्न होकर राजा के महल में आई | नगर में अनेक प्रकार के बधावे बजने लगे | नगर निवासियों ने नगर के दरवाजे पर तोरण व बन्दनवारो से विविध-विधि से नगर सजाया | घर-घर में मंगल गान होने लगे | पंडितों ने विविध वेद मंत्रों का उच्चारण करके अपनी राजरानी का आह्वान किया | ऐसी अवस्था में रानी ने पुनः अपनी राजधानी में प्रवेश किया | महाराज ने अनेक तरह से ब्राह्मणों को दानादि देकर संतुष्ट किया | याचकों को धनधान्य दिया | नगरी में स्थान-स्थान पर सदाव्रत खुलवाये | जहाँ भूखों को खाने को मिलता था | इस प्रकार से राजा शिवाजी की कृपा का पात्र हो राजधानी में रानी के साथ अनेक तरह के सुखों का भोग करते सोमवार व्रत करने लगे | विधिवत शिव पूजन करते हुए , लोक में अनेकानेक सुखों को भोगने के पश्चात शिवपुरी को पधारे | ऐसे ही जो मनुष्य मनसा , वाचा , कर्मणा द्वारा भक्ति सहित सोमवार का व्रत व पूजन इत्यादि विधिवत करता है वह इस लोक में समस्त सुखों को भोगकर अंत में शिवपुरी को प्राप्त होता है | यह व्रत सब मनोरथों को पूर्ण करने वाला है | 

                 सोमवार की आरती !           

जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।

ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।

हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।

त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।

चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।

जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।

प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।

नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।

कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥

जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।

ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥

दिव्य साधना भक्ति संगीत – आत्मा की आवाज़ भक्ति संगीत केवल सुरों का संगम नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के बीच एक दिव्य संवाद है। "दिव्य साधना भक्ति संगीत" इसी संवाद का माध्यम बनता है, जो मन, मस्तिष्क और आत्मा को एक शांति व आनंद की अनुभूति प्रदान करता है। यह संगीत किसी धर्म या जाति से परे, केवल भक्ति की भावना को उजागर करता है। दिव्यता और साधना का संगम "दिव्य साधना" का अर्थ है ऐसी आध्यात्मिक साधना जो हृदय को निर्मल कर दे। जब यह साधना संगीत के माध्यम से व्यक्त होती है, तो यह और भी प्रभावशाली बन जाती है। भक्ति संगीत की यह शैली हमें मंदिरों, तीर्थस्थलों, या एकांत साधना स्थलों का अनुभव देती है – चाहे हम कहीं भी हों। भक्ति संगीत का प्रभाव मानसिक तनाव को कम करता है ध्यान और साधना में सहायक होता है आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करता है सकारात्मक विचारों को जन्म देता है हमारा उद्देश्य हमारा प्रयास है कि दिव्य साधना भक्ति संगीत के माध्यम से हर श्रोता को उस आंतरिक शांति का अनुभव कराया जाए, जिसकी तलाश हर आत्मा करती है। चाहे वह कृष्ण भजन हो, शिव तांडव, या माँ दुर्गा की स्तुति – हर सुर, हर शब्द आपको दिव्यता की ओर ले जाएगा। आइए, इस यात्रा का हिस्सा बनिए यदि आप भी भक्ति संगीत से जुड़कर अपनी साधना को सशक्त बनाना चाहते हैं, तो हमारे साथ जुड़िए। हर दिन नए भजनों, कीर्तनों और मंत्रों के माध्यम से हम आपकी आत्मा को छूने वाले संगीत की अनुभूति दिलाते रहेंगे। Divya Sadhna Bhakti Sangeet – Voice of the Soul Devotional music is not just a confluence of notes, but a divine dialogue between the soul and the Almighty. "Divya Sadhna Bhakti Sangeet" becomes the medium of this dialogue, which provides a feeling of peace and joy to the mind, brain and soul. This music highlights only the feeling of devotion, beyond any religion or caste. A confluence of divinity and sadhana "Divya Sadhna" means such spiritual sadhana that purifies the heart. When this sadhana is expressed through music, it becomes even more effective. This style of devotional music gives us the experience of temples, pilgrimage sites, or secluded sadhana places – wherever we are. Effect of Bhakti Sangeet Reduces mental stress Helps in meditation and sadhana Transmits spiritual energy Gives birth to positive thoughts Our aim Our endeavor is to make every listener experience the inner peace that every soul seeks through Divya Sadhna Bhakti Sangeet. Be it Krishna Bhajans, Shiv Tandava, or Maa Durga ki Stuti – every note, every word will take you towards divinity. Come, be a part of this journey If you too want to strengthen your sadhana by connecting with devotional music, then join us. Through new bhajans, kirtans and mantras every day, we will continue to make you experience music that touches your soul.

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